फ़ैज
अहमद फ़ैज
1
मुझसे
पहली सी मुहब्बत मेरे मेहबूब ना मांग।
और
भी दुख हैं जमाने में मुहब्बत के सिवा।
राहते
और भी हैं बस्ल के राहत के सिवा
2
मैंने
समझा था कि तू है तो दरक्षां है हयात।
तेरा
ग़म है तो ग़मे दहर का झगड़ा क्या है.
3
तेरी
सूरत से है आलम में बहारों को सबात।
तेरी
आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है।
4
तू
जो मिल जाए तो तक़दीर निगू हो जाए।
यू
ना था, मैने फ़क़त, चाहा था यूं हो जाए।
5
अनगिनत
सदियों के तारीक बहीमाना तिलस्म,
रेशमो
अलतसो कामख्वाब में बुनबये हुए।
6
जांबज़ा
बिकते हुए कूचा ओ बाज़ार में जिस्म,
ख़ाक
में लिथेरे हुए, खून में नहलाए हुए
7
लौट
जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे?
अब
भी दिलकस है तेरा हुश्न मगर क्या कीजे?
8
और
भी दुख हैं ज़माने में मुहब्बत के सिवा
राहतें
और भी हैं बस्ल के राहत के सिवा
मुझसे
पहली सी मुहब्बत मेरे मेहबूब ना मांग।
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