Vinod Club

 


फ़ैज अहमद फ़ैज 001

 


फ़ैज अहमद फ़ैज

1

मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे मेहबूब ना मांग।

और भी दुख हैं जमाने में मुहब्बत के सिवा।

राहते और भी हैं बस्‍ल के राहत के सिवा

2

मैंने समझा था कि तू है तो दरक्षां है हयात।

तेरा ग़म है तो ग़मे दहर का झगड़ा क्या है.

3

तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात।

तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है।

4

तू जो मिल जाए तो तक़दीर निगू  हो जाए।

यू ना था, मैने फ़क़त, चाहा था यूं हो जाए।

5

अनगिनत सदियों के तारीक बहीमाना तिलस्‍म,

रेशमो अलतसो कामख्वाब में बुनबये हुए।

6

जांबज़ा बिकते हुए कूचा ओ बाज़ार में जिस्म,

ख़ाक में लिथेरे हुए,  खून में नहलाए हुए

7

लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे?

अब भी दिलकस है तेरा हुश्न मगर क्या कीजे?

8

और भी दुख हैं ज़माने में मुहब्बत के सिवा

राहतें और भी हैं बस्‍ल के राहत के सिवा

मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे मेहबूब ना मांग।

Post a Comment

0 Comments